“जो साहित्य जीवन की सच्चाइयों से मुंह मोड़ ले, वह केवल सजावट बनकर रह जाता है।”
जब भी हिंदी साहित्य की दुनिया में यथार्थवाद और सामाजिक चेतना की बात होती है, तो सबसे पहले याद आता है मुंशी प्रेमचंद का नाम। वे न केवल एक महान साहित्यकार थे, बल्कि एक विचारक, समाज-सुधारक और संवेदना…
